भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से
इरादे हो तेरे गर आसमानी
हो चाहे हर शय की ज़बानी
चलते चलते यूँ बेफ़िजूल से
मिलना है इक दिन धूल से
भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से ।
कमा ले जितनी मालो दौलत
बना ले जितनी शानो शौकत
रह जायेगी सब धरी की धरी
बात समझ ले यह ख़री ख़री
गिरते पङते यूँही उसूल से
मिलना है इक दिन धूल से
भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से ।
ज़िंदगी तूने जैसे भी जी
बंदगी तूने कैसे भी की
हिसाब होगा हर एक चीज का
बोये गए हर एक बीज का
फलते फूलते यूँही फिजूल से
मिलना है इक दिन धूल से
भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से ।
भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से
इरादे हो तेरे गर आसमानी
हो चाहे हर शय की ज़बानी
चलते चलते यूँ बेफ़िजूल से
मिलना है इक दिन धूल से
भूल कभी ना भूल से
बना है तू तो धूल से ।।
आपकी रचना पढ़ कर बार बार दोहरा रही हूँ -भूल कभी न भूल से,
बना है तू तो धूल से । alert करतीं हैं ये सुंदर पंक्तियां।
Right says …..
Shukria