सिमटी हुई तेरी पलकें
कुछ कह रही है मुझसे
आहिस्ता से यूँ दबे पांव
हौले हौले दिल के आशियाँ में
अपना असर छोड़ती हुई
जब भी ये उठती है
मेरी नींद साथ में चल देती
ख्वाबो के जहाँ में दोनों ही
बस चलती जा रही
शायद किसी मोड़ पर मिले तुझसे
हसरत के इक जहाँ में
सही गलत के पार
जब कभी ये पलके भारी हुई
तेरे अकस को मेने पाया इन पर
अश्क़ो से भीगकर वही ठहर गया है
इसका तो रंग भी कबका उड़ चुका
अब तो बस ख़ुशबू सी तैर रही
इन पलकों के शामियाने में
मेने कई लफ्ज़ो के ताने बुने
रेशमी उस एहसास से भरे हुए
जो पहली नज़र में रहता है
भीगी हुई तेरी पलके
कुछ कह रही है मुझसे
इन्हे शायद अभी हुआ है यकीं
मेरी भी पलके आज नम है
👍
Bahut khubsurat