मुहब्बत के वोह ज़माने, फिर से याद आने लगे
ठहरे थे दिल में कही, ज़ेहन पर अब छाने लगे
नीले आसमां के तले, परिंदे से उड़ रहे है ख्वाब
झूमती हवाओ के संग, बादल बन बरसने लगे
महकती हुई फ़िज़ा ने, खोला जो आँचल अपना
नन्हे नन्हे अंकुर, दिल कि ज़मीं पर उगने लगे
मौसम का मिज़ाज़, रूमानी हर दिन होता नहीं
इश्क़ के चमन में यहाँ, फूल हजार खिलने लगे
गुजरते वक़्त कि नदी में, तैर रहे है कई लम्हे
यादों कि कश्तियों में, अब वो सवार होने लगे
उठती गिरती लहरे जहाँ, यूँ बाहें खोले मिलती
तसव्वुर के निशान भी, अब रूह पर छपने लगे
निगाहो के वो फ़साने, मुझे फिर आजमाने लगे
पलकों से छलक कर, रूख पर अश्क़ बहने लगे
मुहब्बत के वोह ज़माने, फिर से याद आने लगे
ठहरे थे दिल में कही, ज़ेहन पर अब छाने लगे
Nice