ज़ेहन पे ये मेरे न जाने किसका कब्ज़ा है
ख़याल तो मेरे हैं पर कोई और लिखता है
देखना भी चाहूं गर खुद को देख न पाऊं
मुझ को मुझ में अब कोई और दिखता है
ज़ेहन पे ये मेरे न जाने किसका कब्ज़ा है
ख़याल तो मेरे हैं पर कोई और लिखता है
देखना भी चाहूं गर खुद को देख न पाऊं
मुझ को मुझ में अब कोई और दिखता है