ज़ेहन पे ये मेरे न जाने किसका कब्ज़ा है
ख़याल तो मेरे हैं पर कोई और लिखता है
देखना भी चाहूं गर खुद को देख न पाऊं
मुझ को मुझ में अब कोई और दिखता है
ज़ेहन पे ये मेरे न जाने किसका कब्ज़ा है
ख़याल तो मेरे हैं पर कोई और लिखता है
देखना भी चाहूं गर खुद को देख न पाऊं
मुझ को मुझ में अब कोई और दिखता है
क्लास में बैठना है हमेशा लास्ट रॉ में…
ध्यान मगर अटका रहता है फर्स्ट रॉ में…
1st Year के छात्र छात्राओं को College life का funda समझाते हुए रॉकशायर इरफ़ान
जाने किस सफ़र में है ज़िन्दगी
अनजान राहों पर दर्द भी है और मुस्कुराहट भी
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जो समझ रहे हैं कि हम वक़्त बर्बाद कर रहे है
वो सुने के हम खुद में खुद को ईजाद कर रहे है