पहले तो अपनी क़िस्मत सँवारता हूँ
फिर गले लगने को बाहें पसारता हूँ
शिकारे से गीले पानी को निहारता हूँ
मैं अपनी आँखों में तुमको उतारता हूँ
चिनार के बगीचों में वक़्त गुज़ारता हूँ
बर्फ़ीले पहाड़ों पे तुमको पुकारता हूँ
और तुम हो कि कभी आती ही नहीं
हाँ लौटकर ये सदा ज़रूर आती है
के किसे तलाश रहे हो मुसाफ़िर?
तुम किस से हो रहे हो मुतासिर?
वो जिसे तुम ढूँढ रहे हो
वो खोयी ही कब थी?
वो जिसे तुम पुकार रहे हो
दूर गई ही कब थी?
ग़ौर से देखो वो हर जगह है
करती वो इश्क़ तुमसे बेपनाह है
उसे कहाँ तुम इन वादियों में ढूँढ रहे हो
वो तो तुम्हारे तसव्वुर की मलिका है
उसे कहाँ तुम इन पहाड़ों पे खोज रहे हो
वो तो तुम्हारे मुक़द्दर की लैला है
तुम्हारा और उसका साथ तो सदियों से तय है
इस बात की गवाह कायनात की हर शै है
छोड़ तू सारी फ़िक्रे अपनी
तोड़ दे दिल के वहम
तब जाकर मिलेगी तुझे वो तेरी लैला
वो तेरी सनम
और फिर तू जी भरके उससे खूब बातें करना
जिसका ज़िक्र तू अक्सर तन्हाई से करता है
क्योंकि इस बार लौटकर आने वाली सदा
उसे अपने साथ लेकर आई है
खुश हो जा
उसे अपने साथ लेकर आई है।