जो कह नहीं पाता उसे लिख देता हूँ
मैं काग़ज़ पर दिल की बेचैनियाँ उड़ेलता हूँ
मुझे भला किसी सितमगर की क्या ज़रूरत
मैं अपने ज़ख़्म यहाँ ख़ुद कुरेदता हूँ
उसने बड़ी चालाकी से पीठ पर वार किया
इसीलिए तो धोखे से इतना डरता हूँ
सुना है लोग मुझको मजनूँ बुलाते हैं
बुलाएंगे ही सही हर वक़्त लैला-लैला करता हूँ
तुमने आने में ज़रा देरी कर दी
अलविदा ओ मेरी लैला अब मैं चलता हूँ।