मेरी कहानी को कहानी समझके भूल जाना
मज़ाक या फिर कोई नादानी समझके भूल जाना
नहीं चाहता कोई और मुझ जैसा बन जाएं यहां
मेरे अश्क़ों को तुम पानी समझके भूल जाना
पल में आती है, पल-पल भिगा जाती है
बारिश को तुम बेगानी समझके भूल जाना
साथ गुज़रे जो पल, वो पल बड़े हसीन थे
वक़्त की उन्हें मेहरबानी समझके भूल जाना
हो सकता है तुम्हें बुरा लगे, और गुस्सा भी आएं
बीते लम्हों को बेमानी समझके भूल जाना
आहें जितनी भी लिखी हैं, काग़ज़ के पन्नों पर
याद न रखना उन्हें कहानी समझके भूल जाना।
ग़ज़ब👌
शुक्रिया