बहुत दिनों के बाद बारिश हुई आज
ज़मीन और ज़िंदगी दोनों तर हो गई
बिजली के तार पे बारिश की बूंदें जिस तरह से चलती हैं
कुछ उसी तरह ये ज़िंदगी, ज़िंदगीभर अठखेली करती है
काग़ज़ की कश्ती इन दिनों कोई नहीं बनाता
सब अपनी हस्ती बनाने में जो मसरूफ़ हैं
पानी के छपाके भी इन दिनों सहमे से रहते हैं
बुरा ना मान जाएं दीवारें, ये दीवारों से डरते हैं
कीचड़ की वज़ह से इसे मिलती है रुस्वाई
है अंदर इसके, नील समंदर सी गहराई
बादल से ज्यादा बारिश को कौन जानता है
दोनों की जुदाई में सारा आसमान रोता है
सिर्फ पानी ही नहीं, यादें भी बरसाते हैं बादल
एक अर्से तक इन आँखों को तरसाते हैं बादल
बहुत दिनों के बाद बारिश हुई आज
तिश्नगी और तन्हाई दोनों फुर्र हो गई।