चीख-चीखकर मेरी ख़ामोशियां कह रही हैं मुझसे
बोल तो सही, आखिर क्या चाहता है तू खुद से
अंदर ही अंदर ये कैसा बवंडर उठ रहा है
भीतर-भीतर दिल दा समंदर जल रहा है
क्यों मिटा रहा है तू अपनी हस्ती को
क्यों जला रहा है तू अपनी बस्ती को
चीख-चीखकर सभी सरगोशियां कह रही हैं मुझसे
बता तो सही, आखिर क्या चाहता है तू खुद से
ना बताता है ना जताता है, बस खुद को खुद में छुपाता है
जितना हंसाता है उतना रुलाता है, खुद को क्यों सताता है
बस बहुत हुआ, खत्म कर अब इस सिलसिले को
बढ़ भी जा अब आगे तू, ना याद रख पिछले को
चीख-चीखकर मेरी ख़ामोशियां कह रही हैं मुझसे
बोल तो सही, आखिर क्या चाहता है तू खुद से।
Fabulous post
bhut khub sir ji ek dum shi kha apne