राह चलते अजनबियों की मदद कर देता हूँ
कुछ इस तरह अपने गुनाह कम कर देता हूँ
बहुत तलाशने के बाद भी, जब कोई ख़बर ना मिले
मैं उस सिलसिले को वहीं खत्म कर देता हूँ
इल्ज़ाम लगाने वाले, अपने गिरेबां में झांकते नहीं
दोगली दलीलें बिन सुने ही रद्द कर देता हूँ
उसकी याद तो अब भी आती है, बहुत आती है
नहीं आती तो वो, ऐसे में जीना कम कर देता हूँ
जब दिल का नाम लेकर कोई दिल तोड़ देता है
दिल के दरवाज़े सबके लिए बंद कर देता हूँ
खुद को पाने चला था, ख़ुद ही से हार गया
कभी-कभी तो ख़ुदगर्ज़ी की भी हद कर देता हूँ
ज़िंदगी की कश्ती, जब कभी डूबने लगती है
अश्क़ों का सैलाब बहाकर खुद उसे गर्क़ कर देता हूँ।
खुद को पाने चला था, ख़ुद ही से हार गया
कभी-कभी तो ख़ुदगर्ज़ी की भी हद कर देता हूँ
बहुत बहुत खूब
👏👏👏👏👏
shukriya janab