हर शख़्स में अपना अक्स तलाशते हैं
बड़ी ख़ामोशी से लब लफ़्ज़ तलाशते हैं
मिलके भी मिलता नहीं, शिकायत यही रहती है क्यों
ग़ैरों में हम अपने जैसा शख़्स तलाशते हैं
कुसूर सारा नज़रों का हैं, सब जानते हैं सब मानते हैं
फिर भी जाने क्यों वही नक़्श तलाशते हैं
सीने में शीशे सा दिल लेकर, ज़िंदगी भर
न टूटे कभी जो वो तिलिस्म तलाशते हैं
आखिर में कुछ बचता नहीं, कहीं कोई रस्ता नहीं
रूह को ठुकराकर बस जिस्म तलाशते हैं
इसे तन्हाई का तकाज़ा कहे, या शायर का वहम
ग़ज़ल में लोग आजकल नज़्म तलाशते हैं
ये दुनिया वाले हैं, इन्हें क्या फर्क़ पड़ता हैं
ये तो मौत में भी एक रस्म तलाशते हैं।
इसे तन्हाई का तकाज़ा कहे, या शायर का वहम
ग़ज़ल में लोग आजकल नज़्म तलाशते हैं
बहुत खूब
शुक्रिया जनाब
Zindgi jeene ke u to Kai raste h..isliye hm v apne jeene ki wjh
Zindgi jeene ke u to Kai raste h …sayad isliye hm v apne jeene ki wjh tlashte h…
अजनबी रास्तों पर अक्सर हमसफ़र मिल जाते हैं..वो जो आँखों में हर वक़्त नज़र आते हैं