बहुत मन था मेरा तुझसे मिलने का जिस रोज़ तूने मिलने से मना कर दिया मैं तो फिर कहीं नहीं गया उस रोज़ मगर ये बावरा मन मेरा मिलने तेरे घर गया
हवाओं के संग-संग आया था, सो पता कैसे चलता
पता पूछते पूछते आखिर इसका भी दिल भर आया
लौट आया फौरन, ना रुक पाया ज़रा भी देर वहां
इसे मालूम था, बेचैनी मेरी सता रही होगी मुझेे
आखिर अकेला छोड़कर मुझे, ये कहां रह पाता है
जहां भी जाता है, थोड़ी देर में लौट आता है
आकर जो इसने तुम्हारा हाल सुनाया
है वो अब तक मेरी सांसों में समाया
सुबह से उस रोज़, की थी तुमसे मिलने की तैयारी
इन आँखों में बस चुकी थी, तुम्हें देखने की बेक़रारी
और तुम हो, कि अपने आशिक को यूं तड़पा रही हो
हर रोज़ बेवज़ह बस इंतज़ार के तोहफ़े दिए जा रही हो
ख़ैर कोई बात नहीं, किसी दिन तो तुम्हें एहसास हो ही जाएगा
के जितनी शिद्दत से मैंने चाहा है तुम्हें, ना कोई और चाहेगा
बस इतना याद रखना, मेहरबानी नहीं मोहब्बत का मुंतज़िर हूं
जो ग़ौर करोगे कभी तो पता चलेगा, मैं भटकता हुआ एक दिल हूं…