मैं लिखता रहा जिसके लिए शामों सहर वफ़ाएं
वही पूछ बैठी मुझसे यूं देते हो किसे तुम सदाएं
अब मैं उसे समझाऊं, या अपने नादान दिल को
के तुम दोनों ने ही तो दी है मुझे जीने की अताएं..
मैं लिखता रहा जिसके लिए शामों सहर वफ़ाएं
वही पूछ बैठी मुझसे यूं देते हो किसे तुम सदाएं
अब मैं उसे समझाऊं, या अपने नादान दिल को
के तुम दोनों ने ही तो दी है मुझे जीने की अताएं..