काँच के गिलास में मिलने वाली चाय हो तुम
पीकर जिसे बारिश में दिल ये खुश हो जाता है
या फिर कहूँ के बंजारे के लिेए वो सराय हो तुम
ठहरकर जिसमें बंजारे को घर का एहसास होता है
कभी कभी तो यूँ लगता है बारिश की वो बौछार हो तुम
भीगकर जिसमें बेसबर इस रूह को राहत मिल जाती है
हाँ अगर कहूँ के धूप में साया देता शजर हो तुम
पाकर जिसकी छाव सुकून वाला सुकून मिलता है
बेरोज़गार दिल को बाद महीने के मिली सैलेरी हो तुम
पाकर जिसे ख़यालों का खाता खुशियां क्रेडिट करता है
या फिर कहूँ के गर्मी की वो छुट्टियां हो तुम
मनाकर जिन्हें स्टूडेंट यह मन फिर से खिल उठता है
कभी कभी तो यूँ लगता है शायर की वो क़लम हो तुम
डूबकर जो हर दिन कुछ नया अनकहा लिख जाती है
हाँ अगर कहूँ के मीर की वो ग़ज़ल हो तुम
पढ़कर जिसे दिल में दबे अरमां जगने लगते हैं
हफ़्ते भर की थकन उतारने वाला वो इतवार हो तुम
पाकर जिसे पूरे वीक की वीकनैस छूमंतर हो जाती है
या फिर कहूँ के सफ़र-ए-हयात में वो विंडो सीट हो तुम
बैठकर जहां पे हर मुश्किल सफ़र आसां लगने लगता है
कभी कभी तो यूँ लगता है राइटर का वो थॉट हो तुम
बोट पे जिसकी सवार होके हर रोज नया वो नोट लिख देता है
हाँ अगर कहूँ के मेरे ख़यालों की मलिका हो तुम
सोचकर तुम्हें हर बार प्यार से प्यार होने लगता है
अब तक तो तुम यह बात बहुत अच्छी तरह समझ चुकी होंगी
के मेरे दिल के साथ साथ मेरे लफ़्जों पर भी हुकूमत चलती है तेरी
जो ना लिखूं तु्म्हारे बारे में ज़रा भी
तो ये सारे अल्फ़ाज़ बाग़ी होकर गीला कर देते हैं हर वो काग़ज़
जिस पर लिखने की खातिर अपने जज़्बात उड़ेला करता हूँ
और फिर इसी नमी के चलते गुम हो जाते हैं वो सारे अल्फ़ाज और एहसास
जिनमें छुपाकर रखता हूँ हर रोज़ मैं एक तस्वीर तुम्हारी
काँच के गिलास में मिलने वाली चाय हो तुम
पीकर जिसे बारिश में दिल ये खुश हो जाता है
या फिर कहूँ के बंजारे के लिेए वो सराय हो तुम
ठहरकर जिसमें बंजारे को घर का एहसास होता है….RockShayar
Suprrrrr