तुम्हारे माथे पे ज़ुल्फ़ की वो इक लट प्यारी लगती है मुझे
कई बार मैंने तुम्हें इस बारे में बताने का भी सोचा है
सच में यार, बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें मैं
बस कहने को लफ़्ज़ ही नहीं मिल पाते कभी
हालांकि लोग कहते हैं, मैं एक शायर हूँ
लफ़्ज़ों से रिश्ता बहुत गहरा है मेरा
मगर जब भी दिल की बात कहने की बारी आती है
लफ़्ज़ों से रिश्ता मेरा एक अजनबी की तरह हो जाता है
कल तक जिस क़लम को हमदम कहा करता था
आज वही क़लम साथ देने से इंकार कर देती है
मुझे लगता है ये सब जज़्बातों का तिलिस्म हैं
बिना रूह के इस जहान में बेजान हर जिस्म हैं
तुम वही गुमशुदा रूह हो मेरी, जो बरसों पहले बिछुड़ गई थी
अब जाकर मिली हो, इस बार तो छोड़कर नहीं जाओगी ना…
Beautiful post.
Roopkumar2012