ख़ुद को खोकर शख़्स कोई बेगाना ढूंढता हूँ… तुमसे बात करने का बहाना ढूंढता हूँ तुम्हारी आँखों में गुज़रा ज़माना ढूंढता हूँ न जाने कैसा सफ़र है नज़रों से नज़रों का ख़ुद को खोकर शख़्स कोई बेगाना ढूंढता हूँ… Share this:TwitterFacebookLike this:Like Loading... Related