पता नहीं क्या-क्या अंदर लिए बैठा है नज़रो में अश्क़ों का समंदर लिए बैठा है पलकों पे यादों का बवंडर लिए बैठा है। एक अर्से से बहुत कुछ तलाश रहा है पता नहीं क्या-क्या अंदर लिए बैठा है।। Share this:TwitterFacebookLike this:Like Loading... Related