
सुन कभी तो तू मेरे दिल की आवाज़ भी
तुम्हें देखते ही दिल, सफ़र पर निकल पड़ता है
तुम्हारी नज़रों के क़दमों का, ये पीछा करता है
और तब तक वापस नहीं लौटता है
जब तक ये खुद तसल्ली न कर ले
के वो खुशबू लौटकर फिर आ चुकी है
ख़्वाबों के महकते आशियाँ में
पलकों के पहरे देते कारवाँ में
तुम साथ नहीं हो तो क्या हुआ
तुम्हारी परछाई तो अब भी मेरे साथ है
जब भी दिल करता है
धूप में निकल पड़ता हूँ
कभी वो मुझे कुछ किस्से सुनाती है
कभी मैं उसे अपना हिस्सा बनाता हूँ
बस इसी तरह कट रहा है ज़िंदगी का सफ़र
बस इसी तरह महक रहा है यादों का शहर
बस इसी तरह एक दिन राहों में मिल जाओ कहीं
बस इसी तरह एक दिन निगाहों में रहने आओ कभी