तुमसे दूर होते ही खुद से दूर हो जाता हूँ
हर शब तुम्हारी यादें तकिये के नीचे पाता हूँ
कुछ यादें नींद को सुलाती हैं, कुछ यादें बहुत रुलाती हैं
कुछ यादें अपना बनाती हैं, कुछ यादें सपना दिखाती हैं
ख़्वाब में अक्सर वही हक़ीक़त देखता हूँ
हक़ीक़त में जो बस एक ख़्वाब लगती है
तुमसे नज़रें मिलाते ही खुद को भूल जाता हूँ
हर बार तुम को खुद में, और ज्यादा पाता हूँ
तन्हाई में आजकल तुम्हारा ख़याल बुनता हूँ
दबे पांव चली आती दिल की आहट सुनता हूँ
वही आहट, जिसे सुनने को कई बरस से कान तरस रहे हैं
वही चाहत, जिसके सदक़े में बिन मौसम बादल बरस रहे हैं
तुमसे दूर होते ही खुद से दूर हो जाता हूँ
हर शब तुम्हारी आँखें पलकों के नीचे पाता हूँ