हर जगह तुम्हारी मौज़ूदगी का एहसास होता है
हर बार यह एहसास पहले से बहुत ही ख़ास होता है
इसी एहसास के दम पर तो इतना खुश रह पाता हूँ
हालाँकि हाल-ए-दिल तुमसे कभी नहीं कह पाता हूँ
कभी-कभी तो तुम मेरे ख़यालों में इतने क़रीब आ जाती हो
के तुम्हें देखने के लिए नज़रों का नया ताना बुनना पड़ता है
उसी दरमियाँ तुम कुछ ऐसा कर जाती हो
के बाद उसके मुझको बहुत याद आती हो
याद का भी ये कैसा अजब दस्तूर है
कम नहीं होता कभी, इश्क़ वो फ़ितूर है
फ़ितूर ने ही तो दर्द सहने की सलाहियत पैदा की है
वरना हम तो दिल की तरह कब के टूट चुके होते
वैसे टूटा तो बहुत कुछ हैं अंदर
बस बताने और जताने को लफ़्ज़ नहीं हैं अंदर
गर लफ़्ज़ मिल भी जाये कोई
तो साथ अब वो शख़्स नहीं है
हर घड़ी जिसके आस-पास होने का एहसास होता है
हर बार यह एहसास पहले से बहुत ही ख़ास होता है।