यह केवल एक चित्र नहीं, संपूर्ण जीवन शैली है
बणी-ठणी की बात निराली, सौंदर्य की सहेली है
किशनगढ़ के राजा सावंत सिंह के काल में इसका उद्भव हुआ
राजपूताना की राधा कहलायी, और अजयमेरु का गौरव बढ़ा
प्रेयसी के प्रेम में मग्न होकर, महाराज नागरीदास कहलाये
मुसव्विर निहालचंद की कूची से, उसके कई पोट्रैट बनवाये
विख्यात आर्टिस्ट एरिक डिक्सन की, जब इस पर नज़र पड़ी
ऐसी नायाब पेंटिंग को उन्होंने, भारत की मोनालिसा संज्ञा दी
1755 ईस्वी में, इस चित्रशैली का विकास हुआ
देखने वालों को हर बार, नया एक एहसास हुआ
चेहरा और क़द लंबा, तथा नाक नुकीली रहती है
टकटकी बाँधे देखो इसे, यह तस्वीर बात करती है
बैकग्राउंड में इसके तालाब और, तैरती हुई नौकाएं हैं
थोड़ी मासूमियत थोड़ी नज़ाक़त, थोड़ी शोख अदाएं हैं
एक बार जो शख़्स इस बेनज़ीर तस्वीर को देख लेता है
दिल-ओ-दिमाग़ पे उसके, गज़ब का ख़ुमार छा जाता है
पलक झपकते ही, सुनहरे दौर में ले जाती है
यह वो तस्वीर है, जो आँखों से मुस्कुराती है
प्रेम की परिभाषा, सरल शब्दों में बताती है
रूप की मधुशाला, यह नैनों से छलकाती है
ऐसा अद्भुत आकर्षण है, के बताया ना जा सके
दिव्य आभा वो दर्पण है, जो छुपाया ना जा सके
किशनगढ़ का नाम, सारे जग में मशहूर किया
कलाप्रेमियों ने इसे, हाँ नाम हुस्न की हूर दिया
1973 में भारत सरकार ने, एक डाक टिकट जारी किया
बणी-ठणी कलाकृति को, जगत के ज़हन पर तारी किया
यह सिर्फ एक तस्वीर नहीं, मुकम्मल इतिहास है
दीदार करते ही जिसका, होता मखमली एहसास है।