ख़ूबसूरत ही नहीं ख़ूबसीरत हो तुम
दिल से की गई नेक नीयत हो तुम
हज़ार बार देखकर भी जिसे जी नहीं भरता हेै,
पलकें झुकाने को कभी ये दिल नहीं करता है
नज़रों की नज़ाक़त भरी फ़िरदौस सी फ़ज़ीलत हो तुम
तारीफ़ नहीं हक़ीक़त है ये, चाहे मानो या ना मानो
फ़ुर्सत से की गई खुशनुमा वक़्त की वसीयत हो तुम
बेमिसाल कहूं के बेहिसाब, या बेपनाह या बेनज़ीर
अदा ना कर पाऊं जिसे, हाँ वही क़ीमत हो तुम
तुम्हारी बात करना अच्छा लगता है,
तुम्हें याद करना सच्चा लगता है
निगाहों ने दिल को दी है जो, नेकदिल वो नसीहत हो तुम
सोचकर ही जिसे खुशी को भी खुशी मिलती है
सुनो ना जानाँ, इस बेरंग ज़िंदगी की ज़ीनत हो तुम
मोहब्बत हो गई है तुमसे, अब और क्या कहूं मेैं खुद से
मासूमियत की मूरत हो जैसे सादगी की सीरत हो तुम।