चेहरा भी वही है, आँखें भी वही हैं
ऐ अजनबी, तेरी बातें भी वही हैं
वही बातें वही मुलाक़ातें, सब कुछ वैसा ही है
जैसा मेरी सोच के सागर में, कोई मोती तैर रहा हो
कशिश ही कुछ ऐसी है, के कुछ पता ही नहीं चलता है
बस एक डोर है, जिसके सहारे मन ये मेरा खिंचा चला जाता है
तुम जब मुस्कुराती हो, ग़म कोसो दूर हो जाते हैं
दिल के सुर्ख़ दरिया में, चमकते नूर को पाते हैं
तुम्हारी खुशबू का हर इक क़तरा, मेरी साँसों में बहता है
संग तुम्हारे वक़्त बिताने का सपना, मेरी आँखों में रहता है
वही आँखें, जो कई बरसों से सोई नहीं हैं
वही आँखें, जो एक अर्से से रोई नहीं हैं
वक़्त हो गर तुम्हारे पास, थोड़ा देना मुझे
मेरा वक़्त तो कब से, रूठा हुआ है मुझसे
तभी तो गुज़रता ही नहीं, ये बस गुज़र जाता है
मगर जब तुम्हें देखता हूँ, ये वहीँ ठहर जाता है
जहाँ बिछुड़ते वक़्त हमने, कुछ वादे किये थे खुद से
लगता है उन्हीं वादों को पूरा करने आयी हो फिर से
अंदाज़ भी वही है, आवाज़ भी वही है
ऐ अजनबी, तेरा एहसास भी वही है…