पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गयी
जब एक लम्हें ने दिल पर दस्तक दी
बहुत देर तक मैं उस लम्हें को यूँही देखता रहा
यक़ीन को भी यक़ीन होने में बहुत वक़्त लगा
उस लम्हें ने वक़्त की पोटली से कुछ किस्से निकाले
और रख दिए सब के सब यूं मेरे सामने
न मुझे सोचने का मौका मिला, न समझने का वक़्त
एक बार तो मैं भी हैरान रह गया
वक़्त की इस बेवक़्त मेहरबानी से
हालाँकि यादों के एक बवंडर ने मुझे अपने साथ उड़ाने की बहुत कोशिश की
मगर मैंने भी दिल की ज़मीन पर फैली चट्टानों को कसकर पकड़ रखा था
इसी कशमकश में न जाने कब वक़्त गुज़र गया, पता ही नहीं चला
पता तो तब चला, जब उस वक़्त का नाम गुज़रा हुआ वक़्त निकला
बेशक इस बार भी मैंने उस लम्हें को पकड़ने की बहुत कोशिश की
मगर हर बार की तरह इस बार भी हाथों पर अश्क़ों की नमी जमी थी
तभी तो इस बार भी वो लम्हा मुट्ठी से फिसल गया
जिस लम्हें को पकड़ने की कोशिश में मैं वहीँ थम गया
और बाक़ी तो बस इन आँखों में यादों का मंज़र रह गया।