काम की तलाश में बेरोज़गार यादें भटक रही हैं
ज़ेहन के दफ्तर में कहीं कोई वेकेंसी नहीं हैं
सोच का पुराना सिस्टम आजकल अपग्रेड हो चुका है
एहसास का एप भी तो कब का ऑउटडेटैड हो चुका है
अब तो बस फ्लैशबैक फ़ितूर का ही सहारा है
अरमानों का एम्प्लीफायर कब से शोर मचा रहा है
जाॅब की तलाश में बेरोज़गार यादें भटक रही हैं
ब्रेन को दिल की बदतमीज़ बातें खटक रही हैं
इश्क़ करने का अंदाज़ आजकल मोनोलिथिक हो चुका है
ज़िंदगी जीने का अंदाज़ भी तो अब रोबोटिक हो चुका है
ख़्वाहिशों को सप्रेस करना पड़ता है
और खुद ही को इंप्रेस करना पड़ता है
यादों का कम्युनिकेशन स्किल सही नहीं है
तभी तो लफ़्ज़ों में इमोशंस एन थ्रिल नहीं है
पर कोई बात नहीं नादान नाॅस्टेलजिक जज़्बात ही सही
थाॅट की बाॅट पर सवार होकर पहुंच जाएंगे कहीं न कहीं।