
“ना पाने की ख़्वाहिश है, ना खोने का डर”

तुम जब कहीं और देखती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
यूं जब अपनी ज़ुल्फ़ें झटकती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
उस एक पल में खो जाता हूँ
उस एक पल में तुम्हारा हो जाता हूँ
तुम जब मुझको ऐसे पल देती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
तुम्हारे चेहरे का नेकदिल नूर
आँखों में साफ़ झलकता है
तुम जब हिज़ाब में चेहरा छुपाती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
मेरी नींदें उड़ाकर तुमने अपनी पलकों पर सजा ली
तभी तो जानाँ
तुम जब नींद में अपनी पलकें बंद करती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
बहुत कोशिश करता हूँ
धुंधली हो चुकी उन यादों को फिर से ज़िंदा करने की
मगर तुम जब यादों में नज़र नहीं आती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
मोहब्बत तुम्हें भी है मुझे भी है
ये छुपाये कहाँ छुपती है?
तुम जब धीरे से शरमाकर अपना मुंह छुपाती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं
वैसे तो तुम्हारा पता
अब लापता हो चुका है
पर फिर भी जब तुम भूले भटके मेरे ख़्वाबों में आती हो
तब तुम्हें देखता हूँ मैं।
पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गयी
जब एक लम्हें ने दिल पर दस्तक दी
बहुत देर तक मैं उस लम्हें को यूँही देखता रहा
यक़ीन को भी यक़ीन होने में बहुत वक़्त लगा
उस लम्हें ने वक़्त की पोटली से कुछ किस्से निकाले
और रख दिए सब के सब यूं मेरे सामने
न मुझे सोचने का मौका मिला, न समझने का वक़्त
एक बार तो मैं भी हैरान रह गया
वक़्त की इस बेवक़्त मेहरबानी से
हालाँकि यादों के एक बवंडर ने मुझे अपने साथ उड़ाने की बहुत कोशिश की
मगर मैंने भी दिल की ज़मीन पर फैली चट्टानों को कसकर पकड़ रखा था
इसी कशमकश में न जाने कब वक़्त गुज़र गया, पता ही नहीं चला
पता तो तब चला, जब उस वक़्त का नाम गुज़रा हुआ वक़्त निकला
बेशक इस बार भी मैंने उस लम्हें को पकड़ने की बहुत कोशिश की
मगर हर बार की तरह इस बार भी हाथों पर अश्क़ों की नमी जमी थी
तभी तो इस बार भी वो लम्हा मुट्ठी से फिसल गया
जिस लम्हें को पकड़ने की कोशिश में मैं वहीँ थम गया
और बाक़ी तो बस इन आँखों में यादों का मंज़र रह गया।
बारिश की बूंदे
मिट्टी पर जब पड़ती हैं
तब जो खुशबू आती है
वही हो तुम
दोस्तों, यह कहानी है भूत काल बन चुके मेरे उस mobile की
life के memory card से delete हो चुकी एक फाइल की
सफ़र में उसका साथ बस इतना ही लिखा था
हाथों में उसका हाथ बस इतना ही लिखा था
हुआ यूँ, के पानी में गिरकर mobile मेरा मरहूम हो गया
गुज़रे चार सालों का flashback suddenly ज़ूम हो गया
इस story की शुरुआत, मुश्किल वाले दौर में उसकी grand entry से हुई थी
मोहब्बत वाले महीने में मेरी मुलाक़ात, एक रोज़ samsung S3 से हुई थी
उसके करिश्माई Cymera की मदद से मैंने कई हसीन लम्हें संजोये थे
उसकी stylish सेल्फियों से नज़रे चुराकर पलकों के परदे भिगोये थे
चलते-चलते music player ठिठक जाता था
बीच-बीच में अक्सर गाना अटक जाता था
पीठ पर मुहाज़िर बन चुके माज़ी की तस्वीर बनी हुई थी
color note में ज़िन्दगी की तमाम तहरीर लिखी हुई थी
अभी के लिए बस इतना ही, और ज्यादा कुछ नहीं कहना है
फ़िलहाल तो बस कुछ दिनों तक बिना सेलफोन ही रहना है
देखते हैं, इस बार कौनसा नया स्वचालित दूरभाष यंत्र आता है
जो मनमौजी microwaves के ज़रिये, साड्डा मन बहलाता है।
पहले खुश होकर जाता था
अब नाखुश होकर जाता हूँ
कहने को घर अब भी वही है मेरा
बस घर जाने की सूरत बदल गई
घर के आंगन से साज़िशों की बू आती हैं
घर की दीवारें रंज़िशों का पता बताती हैं
घर का हर दर अपनों के सितम का गवाह है
घर में रहने वाले घर की बर्बादी की वज़ह है
पहले घर जाने के बहाने ढूंढता था
अब घर न जाने के बहाने ढूंढता हूँ
कहने को घर अब भी वही है मेरा
बस घर जाने की नीयत बदल गई
घर के बंद कमरों में ज़िंदगी सिसकती है
घर के तंग कोनों में दग़ाबाज़ी झलकती है
घर की बुनियाद में सदियों से धोखा पल रहा है
उसी ज़हर का असर है जो यह दिल जल रहा है
पहले घर से दूर जाने से डरता था
अब घर के पास आने से डरता हूँ
कहने को घर अब भी वही है मेरा
बस घर जाने की हसरत बदल गई।