
तेरा ख़याल जब भी आता है, मायूस दिल मेरा मुस्कुराता है
दिल के बिखरे हुए टुकड़ें फिर से जोड़ने को दिल चाहता है
ज़ेहन का ज़ेहन भी, ख़ालीपन से कुछ इस क़दर बेचैन हो चला है
के जिस राह पे काँटें बिछे हो उसी राह पे चलने को दिल चाहता है
ग़ज़ाला की तरह हैं आँखें तेरी, इन पे ग़ज़ल लिखने को दिल चाहता है
क्या जादू हैं इनमें क्या तिलिस्म, इन्हें दिल से पढ़ने को दिल चाहता है
दिल-ए-नादान का हर एक भरम, टूट गया सफ़र के दौरान
जो ना किया दिल ने अब तक वही करने को दिल चाहता है
रुख़्सत के वक़्त मुझ पर तेरी, कशिश हावी होने लगती है
जाते हुये तुझे बार-बार पलटकर देखने को दिल चाहता है
और कोई हसरत बाक़ी नहीं हैं, और कोई चाहत बाक़ी नहीं हैं
बस एक ज़िंदगी की ख़ातिर दोबारा जीने को दिल चाहता है
गर्दिशे दौराँ का असर है, या फिर कोई और बात है इरफ़ान
अपने लिये बनाया हर एक उसूल अब तोड़ने को दिल चाहता है।
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