मक़सद को पाने की ख़ातिर, ग़ुर्बत में दिन गुज़ारता हूँ आग किसने लगाई घर किसने जलाया, सब जानता हूँ। न जाने किसका तिलिस्म है, जो अब तक नहीं उतरा मैं खुद से ज्यादा आईने में किसी और को निहारता हूँ।।
मक़सद को पाने की ख़ातिर, ग़ुर्बत में दिन गुज़ारता हूँ आग किसने लगाई घर किसने जलाया, सब जानता हूँ। न जाने किसका तिलिस्म है, जो अब तक नहीं उतरा मैं खुद से ज्यादा आईने में किसी और को निहारता हूँ।।