
इन आँखों ने कई मंज़र देखे हैं
ज़रा संभलकर पढ़ना इन्हें
अश्क़ों की ओट में, अनगिनत अधूरे अरमान छुपे हैं
पलकों के पर्दों के पीछे, बीते लम्हों के बयान छुपे हैं
कहीं पे बंजर मैदान हैं, तो कहीं पे खंजर के निशान हैं
नज़रों का नज़ाक़ती नूर, दरअसल एक हूर का एहसान हैं
वो जिसकी तस्वीर, तसव्वुर की निगाहों में हैं
वो जिसकी एक झलक, पलकों की पनाहों में हैं
वो जिसका एहसास, हर साँस में समाया है
वो जिसका अंदाज़, मेरे वज़ूद में नुमायां है
वो जिसका चेहरा, आँखों में है ठहरा
वो जिसका रिश्ता, यादों से है गहरा
वो जिसको भुलाने में, ये ज़िन्दगी गुज़र गयी
वो जिसकी तलाश में, ये ज़िन्दगी ठहर गयी
वो जिसका मुझे अब भी इंतज़ार है
वो जिस पर मुझे अब भी ऐतबार है
वो जिसका ख़्वाब हर शब देखती हैं निगाहें
वो जिसका हिजाब हरदम ढूँढती हैं ये बाहें
वो जिसके अलावा, और कोई नहीं है इनमें
वो जिसके अलावा, और कोई नहीं है दिल में
इन आँखों ने कई समंदर बहाये हैं
ज़रा संभलकर दाख़िल होना इनमें।
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