
बासी लम्हों को पीछे छोड़कर
ताज़ा हवा में साँस ले रहा हूँ
खुद से किये वादे निभा रहा हूँ
मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ
मन की अर्ज़ी सुनकर, मनमर्ज़ी करने लगा हूँ
उधड़ी क़िस्मत सीने, दिल से दर्ज़ी बन गया हूँ
ज़र्रा भी फ़र्क़ नहीं पड़ता, चाहे कोई कुछ भी कहे
आज़ाद हो चुकी हैं राहें, दरिया के जैसे ये अब बहे
दिल की गली को रोशन करके
खुली आँखों से ख़्वाब देख रहा हूँ
आसमां छूने के इरादे बना रहा हूँ
मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ
आज मैं जीने की आदत ने, कल को भुलाने में साथ दिया
फिसलकर जब भी गिरा, अपने साये ने हमेशा हाथ दिया
वक़्त से जो भी वक़्त मिला, उसे जी लिया
दर्द को हमदर्द मानकर, गले से लगा लिया
बासी लम्हों को पीछे छोड़कर
ताज़ा हवा में साँस ले रहा हूँ
खुद से किये वादे निभा रहा हूँ
मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ।
Like this:
Like Loading...
Related
बहुत सुंदर।
zarranawazi
Bhut khub
बहुत बढ़िया लेख है। समय-समय पर विभिन्न प्रकार के अच्छे बलौग की सामग्री पढ़ना अच्छा लगता है । 😊
मेरे ब्लॉग पर आपके विचार का मुझे इंतज़ार रहेगा 🙏🏼
https://classicalpoems.com
behad shukriya mohtarma