
नया दौर तभी आता है, जब पुराना दौर चला जाता है
खुशी और ग़म के इस अमलगम को अलविदा कहा जाता है
दिलों दिमाग़ दोनों हक्के-बक्के रह जाते हैं
समय के अभिनय को वो समझ नहीं पाते हैं
किसी के चले जाने के बाद ही उसकी कमी ख़लती है
दूरियों का ये दस्तूर भी खुद वक़्त के हाथों मज़बूर है
आना-जाना तो ज़िंदगी के चलते रहने की कहानी है
और चलते रहना ही इसके ज़िंदा होने की निशानी है
दोनों ही सूरतों में एक वक़्त ही तो है जो गुज़र जाता है
बाक़ी तो हरएक पल दिल बीती बातों का घर बनाता है
खुशी क्या है, ग़म क्या है, हँसी क्या है, मातम क्या है
ये सब तो सिर्फ जज़्बातों के हाथों की कठपुतलियां हैं
अलविदा कहते हुये अक्सर यह ज़बान लड़खड़ा जाती है
वज़्नी हर्फ़ बोलने का शर्फ़, ठीक उसी वक़्त भूल जाती है
मुलाक़ात से ज्यादा हमेशा रुख़्सत पर ध्यान क्यों दिया जाता है
वक़्त को बार-बार उसके वक़्त होने का एहसास कराया जाता है
इस बार अलविदा को ही अलविदा कहने की सोच रहा हूँ
खुद को पहले से ज्यादा अलहदा बनाने की सोच रहा हूँ।
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