पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है
मिट्टी सा मटमैला, हवाओं सा मलंग है
ज्यादा देर एक जगह रुकता हूँ तो काई जम जाती है
मुझमें किसी और की परछाई नज़र आती है
पानी का जो ढंग है, वही मेरा ढंग है
बर्फ़ सा सख़्त, भाप सा पतंग है
रहने-बहने को जो मिल जाये उसी में ढल जाता हूँ
मैं एहसास की गर्मी पाकर पिघल जाता हूँ
पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है
आकाश सा नीला, बादलों सा बदरंग है
नदी तालाब झील समंदर, क्या कुछ नहीं है मेरे अंदर
जितना बाहर फैला हुआ हूँ, उतना ही मैं गहरा हूँ अंदर
पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है
मिट्टी सा मटमैला, हवाओं सा मलंग है।
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shukriya behad