जाते वक़्त पलटकर ना देखा करो
निगाहें क़दमों को रोकने की कोशिश करती हैं
रुख़्सत के वक़्त अलविदा कहना,
पल में पलकों को गीला कर देना
हो न हो मुझे यह वक़्त की साज़िश लगती है
तुझे याद करने का बहाना,
इतना हसीन है ये फ़साना
के भरी दोपहरी में बेमौसम बारिश बरसती है
वैसे तो ज़िंदगी को फ़ुर्सत नहीं,
ज्यादा किसी से ये मिलती नहीं
पर जब भी मिलती है जीने की गुज़ारिश करती है
नज़रों की इतनी ख़ता हैं,
नज़रें तो दिल का पता हैं
बिछुड़ते वक़्त फिर से मिलने की ख़ाहिश रखती हैं
चार दिन की ज़िंदगी,
रूह की यह तिश्नगी
रब से थोड़ी और मोहलत की सिफ़ारिश करती है
कहीं कोई कमी न रह जाये,
घाव कोई ज़ख़्मी न रह जाये
हर बार हर कोशिश बस यही कोशिश करती है।
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