कुछ लम्हे लम्हे ही रहे, कुछ लम्हे सदियाँ बन गये
कुछ ऐसे मिले वो हमसे के हमारी दुनिया बन गये
कई दिनों से इंतज़ार, कर रही है ज़िंदगी धूप का
रंजो ग़म में डूबे लम्हे ठिठुरती हुई सर्दियाँ बन गये
हिज़्र-ए-दिलबर का असर, दिल पर कुछ ऐसा हुआ
के नज़रों के ख़ामोश ख़त बहती हुई नदियाँ बन गये
नज़र नहीं आता कुछ भी, दिल को अपने ही घर में
दर्द से सराबोर अल्फ़ाज़ दिल की अँखियाँ बन गये
सालों बीत गए हैं, नींद को सोये हुए, नैनों को रोये हुए
बचाकर रखे जो ख़्वाब वो नींद का तकिया बन गये
पहले जिससे मोहब्बत थी, उससे अब नफ़रत हो गई
दिल के सब अरमान मानो जलता हुआ दिया बन गये
दोनों ने बहुत कोशिश की, रिश्ते को बचाने की खातिर
पता नहीं ऐसा क्या हुआ जो फ़ासले दरमियाँ बन गये।
Aisi mor pe chor gye wo bhitar tak tor gye wo..
wahhhhhhhh..bahut khoob