संग तुम्हारे काॅफ़ी पीने की आरज़ू लिये बैठे है हम
और तुम हो कि हरबार बहाना बनाके टाल देती हो
कब तक टालती रहोगी, यूँ खुद को और मुझको
कभी तो आईने में देखो, खुद में पाओगी मुझको
जो खुद में मुझको ना पाओ, तो फिर कहना
तुम्हें सब पता है इस दिल का आलम, है ना ?
रिश्तों को नाम देकर, उन्हें बदनाम क्यों करना
कुछ रिश्ते नाम के मोहताज़ नहीं होते
एहसास को सिर्फ महसूस किया जा सकता है
इसको जताने का माद्दा किसी अल्फ़ाज़ में नहीं
गर सुबह का ख़्वाब सच होता है तो वो ख़्वाब तुम हो
गर दिल की आवाज़ सुन रही हो तो वो आवाज़ तुम हो
संग तुम्हारे जीने की अब आरज़ू लिये बैठे है हम
और तुम हो कि हरबार वादा करके भूल जाती हो
कब तक भूलती रहोगी, यूँ खुद को और मुझको
कभी तो दिल से देखो, पाओगी हरजगह मुझको