एक बुलबुले की तरह है, मन की यह अतरंगी दुनिया
जो कि सरगोशी के साबुन से सतरंगी छल्ले बनाती है
थोड़ी देर को ही सही यह ज़िंदगी के कई रंग दिखाती है
मासूम बच्चे की तरह मुँह बनाती है और फिर चिढ़ाती है
मन के इन सतरंगी बुलबुलों की कहानी बहुत ही छोटी है
इतनी छोटी के सिर्फ मन की आँखों से ही नज़र आती है
अपने दम पे फैसले बदलने की कुव्वत रखते हैं मन के छल्ले ये
मन की सुनते हैं मन की करते हैं, ये रहते हैं मन के मोहल्ले में
पल में बनते हैं पल में बिगड़ते हैं
रोज़ नहीं कभी-कभी ही बनते हैं
मनचले बुलबुले की तरह है मन की यह हसीन दुनिया
जो कि मदहोशी के साबुन से सतरंगी छल्ले बनाती है
थोड़ी देर को ही सही यह लाइफ के कई कलर्स दिखाती है
किसी नाज़नीन के जैसे दिल को लुभाती है अपना बनाती है
मन के इन सतरंगी बुलबुलों का सफ़र बहुत ही मुख़्तसर होता है
इतना मुख़्तसर के जिसे सिर्फ मन की आँखें ही तय कर पाती हैं।।
Aur behtar likh skte the khayal bahut khoobsoorat tha fir b acha likha hai
shukriya…koshish jari hai