नया दौर तभी आता है, जब पुराना दौर चला जाता है खुशी और ग़म के इस अमलगम को अलविदा कहा जाता है दिलों दिमाग़ दोनों हक्के-बक्के रह जाते हैं समय के अभिनय को वो समझ नहीं पाते हैं किसी के चले जाने के बाद ही उसकी कमी ख़लती है दूरियों का ये दस्तूर भी खुद वक़्त के हाथों मज़बूर है आना-जाना तो ज़िंदगी के चलते रहने की कहानी है और चलते रहना ही इसके ज़िंदा होने की निशानी है दोनों ही सूरतों में एक वक़्त ही तो है जो गुज़र जाता है बाक़ी तो हरएक पल दिल बीती बातों का घर बनाता है खुशी क्या है, ग़म क्या है, हँसी क्या है, मातम क्या है ये सब तो सिर्फ जज़्बातों के हाथों की कठपुतलियां हैं अलविदा कहते हुये अक्सर यह ज़बान लड़खड़ा जाती है वज़्नी हर्फ़ बोलने का शर्फ़, ठीक उसी वक़्त भूल जाती है मुलाक़ात से ज्यादा हमेशा रुख़्सत पर ध्यान क्यों दिया जाता है वक़्त को बार-बार उसके वक़्त होने का एहसास कराया जाता है इस बार अलविदा को ही अलविदा कहने की सोच रहा हूँ खुद को पहले से ज्यादा अलहदा बनाने की सोच रहा हूँ।
Month: December 2017
“मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ”
बासी लम्हों को पीछे छोड़कर ताज़ा हवा में साँस ले रहा हूँ खुद से किये वादे निभा रहा हूँ मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ मन की अर्ज़ी सुनकर, मनमर्ज़ी करने लगा हूँ उधड़ी क़िस्मत सीने, दिल से दर्ज़ी बन गया हूँ ज़र्रा भी फ़र्क़ नहीं पड़ता, चाहे कोई कुछ भी कहे आज़ाद हो चुकी हैं राहें, दरिया के जैसे ये अब बहे दिल की गली को रोशन करके खुली आँखों से ख़्वाब देख रहा हूँ आसमां छूने के इरादे बना रहा हूँ मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ आज मैं जीने की आदत ने, कल को भुलाने में साथ दिया फिसलकर जब भी गिरा, अपने साये ने हमेशा हाथ दिया वक़्त से जो भी वक़्त मिला, उसे जी लिया दर्द को हमदर्द मानकर, गले से लगा लिया बासी लम्हों को पीछे छोड़कर ताज़ा हवा में साँस ले रहा हूँ खुद से किये वादे निभा रहा हूँ मैं आजकल ज़िंदगी जी रहा हूँ।
“तेरी यादों का एक पुतला बनाया मैंने”
तेरी यादों का एक पुतला बनाया मैंने दिल के घर से हर जंगला हटाया मैंने तू ऐसी गयी, के फिर लौटकर ना आयी तेरी याद में यादों का डेरा लगाया मैंने याद है वो अपना मिलना, बारिश का होना बाद में जिसे जलना था वही हिस्सा भिगाया मैंने तुमको क्या पता, मेरे साथ क्या-क्या हुआ खुद को ही भूल बैठा, खुद को इतना सताया मैंने इंतज़ार की हद गुज़री, पर ना गुज़री वो रात नागवार उस रात में हर जज़्बात मिटाया मैंने मेरी मोहब्बत पे नाज़ करने वाली, कहाँ खो गयी तू तुझे याद कर-करके हिज़्र का हर एक लम्हा बिताया मैंने बहाकर न ले जाये कभी, गलती से अपने साथ कहीं अश्क़ों से छुपाकर आँखों में तेरा सपना सजाया मैंने मिलने का इरादा हो तो, चले आना कभी भी यादों की पहाड़ी पर घर अपना बनाया मैंने।
“पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है”
पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है मिट्टी सा मटमैला, हवाओं सा मलंग है ज्यादा देर एक जगह रुकता हूँ तो काई जम जाती है मुझमें किसी और की परछाई नज़र आती है पानी का जो ढंग है, वही मेरा ढंग है बर्फ़ सा सख़्त, भाप सा पतंग है रहने-बहने को जो मिल जाये उसी में ढल जाता हूँ मैं एहसास की गर्मी पाकर पिघल जाता हूँ पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है आकाश सा नीला, बादलों सा बदरंग है नदी तालाब झील समंदर, क्या कुछ नहीं है मेरे अंदर जितना बाहर फैला हुआ हूँ, उतना ही मैं गहरा हूँ अंदर पानी का जो रंग है, वही मेरा रंग है मिट्टी सा मटमैला, हवाओं सा मलंग है।
“चलते रहना ही ज़िंदगी है”
हर तरफ घना कोहरा है कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है ऐसे वक़्त में आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है लेकिन मुश्किल के ठीक आगे खड़ी मंज़िल है धीरे-धीरे क़दमों को आगे बढ़ाना है धुंध में चलने का एक यही सलीक़ा है जब कुछ भी नज़र ना आये तब चलते रहना ही बेहतर है कई बार वक़्त को भी वक़्त लगता है नूर का दरख़्त बनने में, धुंध छटने में जब सोचने-समझने की आदत काम ना आये तब क़दमों के चलने की आदत ही काम आती है कोहरे का असर ज्यादा देर नहीं रहता है रौशनी के आते ही यह गायब हो जाता है धुंध में एक बात सीखी है चलते रहना ही ज़िंदगी है।
“तुम यहीं हो कहीं”
मैं अब भी उस बारिश का इंतज़ार कर रहा हूँ जिसका होना हमारे मिलने का इशारा होता था तुम्हें याद है एक दिन मैंने एक दीवानगी की थी जिस दिन तुम बारिश में पूरी तरह भीग गयी थी और मैं उस बरसती बारिश में तुम्हें बाइक पर लेने आया था उन गीले कपड़ों को मैंने कई दिनों तक सूखने नहीं दिया था जिनमें तुम्हारी खुशबू ठहर गयी थी उस पल दिल में एक लहर उठी थी मैं अब भी उस लहर का इंतज़ार कर रहा हूँ जिसका उठना तुम्हारे आस-पास होने का इशारा होता था तुम्हें याद है तुमने मुझे एक बार अपना स्कार्फ दिया था जिसको छूने पर मुझे तुम्हारा वो चेहरा महसूस हुआ था जिसके महीन रेशों में तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का साया छुपा था जिसके पश्मीना धागों में तुमने अपना एहसास बुना था बाइक चलाते हुये अक्सर जिसे मैं मुँह पर बाँध लेता था तब ऐसा लगता मानों तुम मुझे साँसें दे रही हो और सर्दियों में जब उसे अपने गले में बाँधता तब ऐसा लगता मानों तुमसे गले मिल रहा हूँ मैं अब भी उस एहसास का इंतज़ार कर रहा हूँ जिसका होना फिर से मिलने का इशारा होता है आज फिर वही बारिश हो रही है फिर वही लहर उठ रही है फिर वही एहसास हो रहा है के तुम यहीं हो कहीं, मुझमें हो छुपी तुम यहीं हो कहीं, मुझमें हो बसी।
“निगाहें क़दमों को रोकने की कोशिश करती हैं”
जाते वक़्त पलटकर ना देखा करो निगाहें क़दमों को रोकने की कोशिश करती हैं रुख़्सत के वक़्त अलविदा कहना, पल में पलकों को गीला कर देना हो न हो मुझे यह वक़्त की साज़िश लगती है तुझे याद करने का बहाना, इतना हसीन है ये फ़साना के भरी दोपहरी में बेमौसम बारिश बरसती है वैसे तो ज़िंदगी को फ़ुर्सत नहीं, ज्यादा किसी से ये मिलती नहीं पर जब भी मिलती है जीने की गुज़ारिश करती है नज़रों की इतनी ख़ता हैं, नज़रें तो दिल का पता हैं बिछुड़ते वक़्त फिर से मिलने की ख़ाहिश रखती हैं चार दिन की ज़िंदगी, रूह की यह तिश्नगी रब से थोड़ी और मोहलत की सिफ़ारिश करती है कहीं कोई कमी न रह जाये, घाव कोई ज़ख़्मी न रह जाये हर बार हर कोशिश बस यही कोशिश करती है।
“तलाश”
तलाश कभी भी ख़त्म नहीं होती है तलाश तो बस सोच की एक किस्म होती है तक़दीर के पन्नों पर कई सवाल लिखती है तलाश तो खुद अपने बारे में सवाल करती है भीड़ में अक्सर गुम हो जाती है तलाश में आँखें नम हो जाती हैं हर जगह ना जाने क्या ढूँढती है तलाश तो बस खोयी हुयी एक आस ढूँढती है हक़ीक़त जानना ही नहीं चाहती है तलाश तो बस तलाश रहना चाहती है पानी पर चलने का वहम पैदा करती है तलाश तो खुद अपने क़दमों के निशां छोड़ती है तलाश कभी भी पूरी नहीं होती है तलाश तो बस मन की अधूरी प्यास होती है।
“क्या बादलों पे चलना चाहते हो”
क्या बादलों पे चलना चाहते हो
तुम गिरके फिर संभलना चाहते हो
तो खोल दो अपने वो पंख सारे
गर परिंदों के जैसे उड़ना चाहते हो
पहले अपने दिल को रौशन करो
गर रौशनी के जैसे दिखना चाहते हो
बेतहाशा सब्र रखो और दर्द चखो
गर आग के जैसे जलना चाहते हो
मिटा दो मन के अँधेरे वो सारे
गर सूरज के जैसे बनना चाहते हो
थमना नहीं है कहीं, बात यही है सही
गर सफ़र के जैसे चलना चाहते हो
ज़िन्दगी को हँसकर गले लगाओ, नाचो गाओ ख़ुशी मनाओ
गर ज़िन्दगी के जैसे जीना चाहते हो।
“दिल की बेचैनी का अक्स अश्क़ों में नज़र आता है”
यह किसका असर है जो लफ़्ज़ों में नज़र आता है
दिल की बेचैनी का अक्स अश्क़ों में नज़र आता है
बारिश को बाहों में भरकर भी जो प्यासा रहता है
बेसब्र सा वो अब्र तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में नज़र आता है
कभी पल में गुज़र जाता है, कभी गुज़रता ही नहीं
वक़्त का यह हसीं सितम किश्तों में नज़र आता है
तक़्दीर का एक तूफ़ान, सब कुछ तबाह कर गया
दिल का दरख़्त उजड़ा कई हिस्सों में नज़र आता है
जिन रिश्तों की बुनियाद, यक़ीन पर टिकी होती हैं
अपनेपन का एहसास उन रिश्तों में नज़र आता है
ये दुनियावाले हैं, दुनियादारी की ही बातें करेंगे
रूह का साया भी इन्हें तो जिस्मों में नज़र आता है
शायर की डायरी में, छुपे हैं कई अनछुए से जज़्बात
बंजर दिल का मंज़र उसकी नज़्मों में नज़र आता है।
“मुझमें है जो मेरा उसे कहीं और ढूँढता हूँ”
मुझमें है जो मेरा उसे कहीं और ढूँढता हूँ
मैं गुमशुदा राहों से अपना पता पूछता हूँ
हक़ीक़त से मुझको रूबरू कराने वाले
मैं ख़्वाब में भी तेरा ख़्वाब देखता हूँ
करने को तो बहुत कुछ हैं, इस दुनिया में मगर
दिल लगे जिसमें काम मैं वही करता हूँ
सुनने में अजीब है, लेकिन सच यही है
मैं अनजानों से नहीं अपनों से डरता हूँ
दूर है मंज़िल पास है मुश्किल, इसलिये
सफ़र के लिये कुछ साँसें बचाके रखता हूँ
चलना बेहद ज़रूरी है, रुकना तो खुद एक दूरी है
मैं बिना रुके बेसबब बस चलता रहता हूँ
सवालों के सफ़र में जवाब बस यही मिला
मुझमें है जो मेरा उसे कोई और कहता हूँ।
“वो रास्ता”
जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं
तब एक रास्ता खुलता है
देखने में जो अजनबी लगता है
पर वो रास्ता इंतज़ार करता है
हमारा और हम उसका
दोनों की मुलाक़ात कब होगी कोई नहीं जानता।
ज़िंदगी की भूल भुलय्या में कई रास्ते हैं
आने-जाने के लिये
लेकिन सही रास्ता कौनसा हैं
यह तो उस पर चलने के बाद ही पता चलता है।
क़दमों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
इस बात से के रास्ता कौनसा हैं
ये तो बस चलना जानते हैं
आगे बढ़ना जानते हैं।
सो मैंने भी इस बार क़दमों को रुकने नहीं दिया
बल्कि चलने दिया
आगे बढ़ने दिया
अपना रास्ता खुद चुनने दिया
शायद वो इंतज़ार ख़त्म होने वाला है
मेरा और मेरे रास्ते का।
“मन तो मन है बेवज़ह सोचता है”
क्या चाहता है ये क्या बोलता है
मन तो मन है बेवज़ह सोचता है
पल में राज़ी पल में उदास
नहीं रहता इसे होशो हवास
समझदार होकर भी नादान है, ये खुद से ही परेशान है
सबकी ख़बर रखने वाला ये मन खुद से ही अनजान है
प्यार भी यही है, तक़रार भी यही है
ना उतरे जो वो खुमार भी यही है
आवारा होके हर जगह घूमता है
मन तो मन है बेवज़ह झूमता है
बेकाबू मन को जिसने भी काबू किया
दिलो दिमाग़ पर उसी ने जादू किया
अभी इधर तो अभी उधर
नहीं इसकी कोई अपनी डगर
बंजारा बनके यहाँ वहाँ डोलता है
मन तो मन है बेवज़ह सोचता है।
“कुछ ऐसे मिले वो हमसे के हमारी दुनिया बन गये”
कुछ लम्हे लम्हे ही रहे, कुछ लम्हे सदियाँ बन गये
कुछ ऐसे मिले वो हमसे के हमारी दुनिया बन गये
कई दिनों से इंतज़ार, कर रही है ज़िंदगी धूप का
रंजो ग़म में डूबे लम्हे ठिठुरती हुई सर्दियाँ बन गये
हिज़्र-ए-दिलबर का असर, दिल पर कुछ ऐसा हुआ
के नज़रों के ख़ामोश ख़त बहती हुई नदियाँ बन गये
नज़र नहीं आता कुछ भी, दिल को अपने ही घर में
दर्द से सराबोर अल्फ़ाज़ दिल की अँखियाँ बन गये
सालों बीत गए हैं, नींद को सोये हुए, नैनों को रोये हुए
बचाकर रखे जो ख़्वाब वो नींद का तकिया बन गये
पहले जिससे मोहब्बत थी, उससे अब नफ़रत हो गई
दिल के सब अरमान मानो जलता हुआ दिया बन गये
दोनों ने बहुत कोशिश की, रिश्ते को बचाने की खातिर
पता नहीं ऐसा क्या हुआ जो फ़ासले दरमियाँ बन गये।
“किसे होता यहाँ खुद पे गुमान नहीं”
यह तज़ुर्बा भी इतना आसान नहीं
किसे होता यहाँ खुद पे गुमान नहीं
किराये की बस्ती है, ये दुनिया ये महफ़िल
यहाँ किसी का अपना मकान नहीं
चुरा के शख़्सियत, पहन लेता हूँ अक्सर
मेरी अपनी कोई पहचान नहीं
पहले लुटा, फिर टूटा, फिर रूठा
दिल अब पहले सा नादान नहीं
हँसते हुये जलना, सीख लिया है इसने
यूँ होता आजकल परेशान नहीं
चंद पल मिले हैं, गुज़र जायेंगे
मेहमान हैं ये पल मेजबान नहीं
तीर तो तैयार है कब से, दिल चीरने को
कसी हुई मगर नज़रों की कमान नहीं।
“कई दिनों से दिल में एक बात है”
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से खामोश जज़्बात हैं
कई दिनों से आँखें सोई नहीं हैं
कई दिनों से आँखें रोई नहीं हैं
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से बंजर ये बरसात है
कई दिनों से यादें याद आ रही हैं
कई दिनों से यादें दिल जला रही हैं
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से बेचैन यह रात है
कई दिनों से सुकून खो गया है
कई दिनों से जुनून गुमशुदा है
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से गुमसुम आवाज़ है
कई दिनों से मैं कहीं और हूँ
कई दिनों से मैं कोई और हूँ
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से बेअसर अल्फ़ाज़ हैं
कई दिनों से सफ़र की सोच रहा हूँ
कई दिनों से लहर को खोज रहा हूँ
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से अजनबी अंदाज़ है
कई दिनों से साँस नहीं ले पा रहा हूँ
कई दिनों से कुछ नहीं कह पा रहा हूँ
कई दिनों से दिल में एक बात है
कई दिनों से मुसल्सल ये रात है
कई दिनों से सूरज निकला नहीं है
कई दिनों से वक़्त ये बदला नहीं है
शायद इसीलिए मैं बदल गया
और वक़्त वहीँ पर ठहर गया
खुद को बदलने की कोशिश में
दिल का कच्चा घर जल गया
ज़हन की सयानी साज़िश में
दिल का बच्चा घर जल गया
कई दिनों से दिल में एक बात है
लगता है वही मेरी असल ज़ात है
एक बात जो अब हर घड़ी मेरे साथ है
एक बात जो अब हर पल मेरे पास है।
“जाड़ो का जादुई मौसम”
जाड़ो का जादुई मौसम जब भी आता है
काँपती हुई आवाज़ में कई किस्से सुनाता है
गर सारे किस्से सुनने हैं तो बस यही शर्त है
आखिरी शेर में कही गई बात मानना फर्ज़ है
तो चलिये दोस्तों, आज ये बर्फानी एहसास करते हैं
सिर से पांव तक जमे हुये, कुछ जज़्बात खरोंचते हैं
गुनगुनी धूप की राह, दिनभर जो तकते हैं
तन और मन दोनों ही, यूँ थरथर काँपते हैं
ऐसे सर्द आलम में, इक तुम्हारा एहसास ही है
जो मुझे गर्माहट देता है, खुद में समेट लेता है
जाड़ो का जादुई मौसम जब भी आता है
काँपती हुई आवाज़ में कई किस्से सुनाता है
चाय की चुस्की लाज़िमी है ऐसे मौसम में
नहाने से दूरी बहुत ज़रूरी है ऐसे आलम में
मुँह से भाप का निकलना कुछ ऐसे लगता है
जैसे साँसों की रेल चल रही हो छुकछुक करके
जहाँ एक ओर रजाई से प्यारी चीज कोई नहीं लगती है
वही दूसरी ओर मोबाइल की बैट्री खत्म हो रही होती है
जाड़ो का जादुई मौसम जब भी आता है
काँपती हुई आवाज़ में कई किस्से सुनाता है
गोंद तिल के लड्डू, गुड़ गजक चिक्की मूंगफली
सर्दियों में एक बार तो आईसक्रीम है ज़रूर खानी
यह अलग बात है कि बाद में यह गला बैठ जायेगा
और जब विंटर का हंटर चलेगा तो यह भर आयेगा
जाड़ो का जादुई मौसम जब भी आता है
काँपती हुई आवाज़ में कई किस्से सुनाता है
तो कैसा लगा यह सर्द फ़साना
ठिठुरते लफ़्ज़ों का ताना-बाना
अब नहीं चलेगा कोई बहाना
अब तो पड़ेगा आपको नहाना
यही शर्त है इसे अब निभाना
बाथरूम में तराना यह गाना
जाड़ो का जादुई मौसम है awesome
जाड़ो का जादुई मौसम है awesome…
“Sahar”
“Khwab”
“एक दिन मेरे लिए बहुत तरसोगे तुम”
याद रखना, एक दिन मेरे लिए बहुत तरसोगे तुम
वक़्त रहते क्यों नहीं समझे, खुद से ये कहोगे तुम
यूँही नहीं कह रहा हूँ, लिख लो तुम यह बात मेरी
एकदम से नहीं, यूँ धीरे-धीरे मुझ को खो दोगे तुम
झाड़कर वक़्त की धूल, न पाओगे तुम मुझ को भूल
दबे हैं जो दर्द डायरी में कहीं, कभी तो पढ़ोगे तुम
अभी तो ठुकरा रहो हो, ठुकरा लो कोई बात नहीं
बाद में मुझे ही याद करके, तन्हाई में रोओगे तुम
सताएगी जब बैचैनी तुम्हें, मिलेगा नहीं चैन तुम्हें
रात रातभर जागकर, यूँ इधर-उधर टहलोगे तुम
पहले लहू टकपने लगेगा, फिर दिल धड़कने लगेगा
ज़ख्मों को जब भी, यादों के नश्तर से छुओगे तुम
महसूस करो या न करो, पर इतना ज़रूर जान लो
हरजगह हरघड़ी, फ़क़त मुझ को ही पाओगे तुम।
“बर्फ़ से ढके हुये पहाड़ मुस्कुरा उठते हैं”
बर्फ़ से ढके हुये पहाड़ मुस्कुरा उठते हैं
जब भी इनसे कोई मिलने आता है
यह अलग बात है कि लोग यहाँ पर घूमने आते हैं
पर इन्हें लगता हैं, इनका हालचाल पूछने आते हैं
सर्दियों में सूरज से इनकी दोस्ती हो जाती है
इसी ख़ुशी में शबनम की बूँदें छलक आती हैं
बर्फ़ की सफ़ेद चादर के नीचे एक और चादर है
तन्हाई की काली चादर, दर्द छुपाने की ख़ातिर
पहाड़ों पर जो पेड़ हैं, वो तिरछे से लगते हैं
शायद वो काली चादर को चूमना चाहते हैं
बरसों से जिसने इन्हें आपस में बांध रखा हैं
बिना किसी डोर के, ख़ामोश से उस शोर से
बर्फ़ से लदे हुये पहाड़ मुस्कुरा उठते हैं
जब भी इन पे कोई क़दम रखता है
यह अलग बात है कि वो ऊपर चढ़ता है
पर इन्हें लगता है ये नीचे उतर रहे हैं
बर्फ़ से ढके हुये पहाड़ मुस्कुरा उठते हैं
जब भी इनसे कोई मिलने आता है।
“मेरी नज़र से खुद को देख”
सच्चे दिल का यक़ीं है तू, आसमां की ज़मीं है तू
मेरी नज़र से खुद को देख, हुस्न से भी हसीं है तू
तेरी शोख़ियों पर खुद चाँद भी फ़िदा है
तेरी आँखों पर सारी कायनात शैदा है
तेरे रुख़सार पर जो हया रहती है
तेरी तारीफ़ वही तो बयां करती है
लरज़ते हुए लबों के पास, वो जो एक काला तिल है
नज़र न लगे किसी की, इस दुआ में वो शामिल है
ज़िंदगी की कड़ी धूप से बचने को
तेरे गेसुओं की घनी छाँव काफी है
दीदार को मुन्तज़िर हैं कब से ये निगाहें
करवटें बदलती रहती हैं अक्सर ये बाहें
मुद्दत हो गई है जानाँ पलकों से पलकें मिलाये
आओ ना फिर से एक बार हम ज़िंदा हो जाये
जो सोचा वही है तू, दूर नहीं यहीं कहीं है तू
मेरी नज़र से खुद को देख, मुझमें बसी है तू।
“तुम मेरा सफ़र हो”
वादियों के जहान में रहने वाली, क्या तुझे मैं याद नहीं
ऐसा तो कोई लम्हा नहीं, जिसमें तू होती मेरे साथ नहीं
यह बात अलग है कि मोहब्बत मेरी इकतरफ़ा है
मगर यह क्या कम है कि अंदाज़ मेरा अलहदा है
बहुत दिन हो गये हैं, ख़्वाब में भी तुम्हारा ख़्वाब नहीं आया
बिना बहाने के भी कभी-कभी मुलाक़ात हो सकती है, हैं ना !
न कोई तसव्वुर पे बंदिश, न कोई ख़यालों में जुंबिश
कोई तो इशारा दो, चाहे वो गुज़ारिश या हो वो बारिश
बेनज़ीर सी वो बातें, मुझे तो अब तक सब याद हैं
यह अलग बात है कि तुम्हें मेरी याद ही नहीं आती
न शाम में हो न सहर में हो, मालूम नहीं किधर को हो
आख़िर मैंने भी यह मान लिया, कि तुम मेरा सफ़र हो
आख़िर मैंने भी यह जान लिया, कि तुम मेरा सफ़र हो
मेरे दिल के घर में रहने वाली, क्या तुझे मैं याद नहीं
ऐसा तो कोई पल नहीं, जिसमें तू होती मेरे साथ नहीं।
“तेरी मुस्कुराहट से भरा वो हर इक लम्हा”
तेरी मुस्कुराहट से भरा वो हर इक लम्हा
जो मैंने अपनी आँखों में संभालकर रखा है
आजकल मेरी तन्हाई का साथी है।
कई बार अश्क़ों ने कोशिश की हैं
इसे अपने साथ बहा ले जाने की
मगर हर बार ये नाकाम ही रहे
जब भी उदास होता हूँ, इसे पहन लेता हूँ।
चेहरे पर जितने भी चेहरे लगाए हैं मैंने
वो सब चेहरे
तेरा चेहरा याद आते ही एक जैसे हो जाते हैं
कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आता फिर उनमें
फ़र्क़ नज़र आये भी तो कैसे
आँखें भी आख़िर मन की आँखें जो ठहरी।
तेरी मुस्कुराहट से भरा वो हर इक लम्हा
जो मैंने अपनी यादों में संभालकर रखा है
आजकल मेरी तन्हाई का साथी है।
“मन की अतरंगी सतरंगी दुनिया”
एक बुलबुले की तरह है, मन की यह अतरंगी दुनिया
जो कि सरगोशी के साबुन से सतरंगी छल्ले बनाती है
थोड़ी देर को ही सही यह ज़िंदगी के कई रंग दिखाती है
मासूम बच्चे की तरह मुँह बनाती है और फिर चिढ़ाती है
मन के इन सतरंगी बुलबुलों की कहानी बहुत ही छोटी है
इतनी छोटी के सिर्फ मन की आँखों से ही नज़र आती है
अपने दम पे फैसले बदलने की कुव्वत रखते हैं मन के छल्ले ये
मन की सुनते हैं मन की करते हैं, ये रहते हैं मन के मोहल्ले में
पल में बनते हैं पल में बिगड़ते हैं
रोज़ नहीं कभी-कभी ही बनते हैं
मनचले बुलबुले की तरह है मन की यह हसीन दुनिया
जो कि मदहोशी के साबुन से सतरंगी छल्ले बनाती है
थोड़ी देर को ही सही यह लाइफ के कई कलर्स दिखाती है
किसी नाज़नीन के जैसे दिल को लुभाती है अपना बनाती है
मन के इन सतरंगी बुलबुलों का सफ़र बहुत ही मुख़्तसर होता है
इतना मुख़्तसर के जिसे सिर्फ मन की आँखें ही तय कर पाती हैं।।
“नेक दिल का दिल न तोड़ना कभी”
नेक दिल का दिल न तोड़ना कभी
एक उम्र गुज़र जाती है मातम मनाने में
दिल तोड़ने का हसीं तमाशा तो सदियों से चला आ रहा है
ये कोई आज की बात नहीं, ये तो बरसों से चला आ रहा है
जब भी कोई दिल टूटता है, खुद से और ज्यादा जुड़ता है
बरसों से एक यही तो नुस्खा है दिल का दिल बहलाने का
नेक राह के मुसाफ़िर को न छेड़ना कभी
एक भूल हज़ारों ज़िंदगियाँ बर्बाद कर देती हैं
साज़िश का शिकार भी अमूमन वही होता है
वो जो सबको साथ लेकर चलता है
सबको खुश रखने की चाह में
अपने लिये वो आहें चुनता हैं
ठोकर खाकर ही तो वो हर बार संभलता है
चेहरे से तो हँसता है पर भीतर कहीं जलता है
नेक नीयत पे इल्ज़ाम न लगाना कभी
एक उम्र गुज़र जाती है बेकुसूर साबित होने में।
“उदास नहीं होता मैं अब, खुश रहने की आदत हो गई”
उदास नहीं होता मैं अब, खुश रहने की आदत हो गई
एहसास नहीं होता ये अब, दिल को ये आदत हो गई
अपने आप से पूछता हूँ, आजकल मैं कई सवाल
वही सवाल, जिनके जवाब मुझको भी नहीं पता
दिल का दिल बैठ जाता है, जब भी वो वक़्त आता है
वही वक़्त, जिसमें कि खुद वक़्त भी ठहर जाता है
तुमसे मिलने की उम्मीद अब भी क़ायम है
और उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है
उदास होने पर एक जगह बैठ जाता हूँ
सोचना-समझना सब बंद कर देता हूँ
मेरे अंदर जो शख़्स है, उसे मेरी बड़ी फिक्र है
एक वही तो है, जो हमेशा मेरा ख्याल रखता है
कभी-कभी वो मुझको गले से लगा लेता है
और कभी-कभी अपना मुँह फेर लेता है
शिकायत है उसे तो बस उस उदासी से
जो कभी मिटती नहीं इस वक़्त के साथ।
“दर्द काग़ज़ पर उतर आया”
सीने में जो कहीं छुपा था, वो दर्द आवाज़ में नज़र आया
दिल में जो कहीं दबा था, वो दर्द काग़ज़ पर उतर आया
खुद को खोने का एहसास होने पर, कभी नहीं सोया मैं
हर बार यह एहसास होने पर, दो बार रोया मैं
पहला उस एहसास को लिखते वक़्त
दूसरा उस एहसास को पढ़ते वक़्त
दिल पर पत्थर रखकर, जाने कितने फैसले किये
दिल को नादान समझकर, दिमाग़ ने फैसले लिये
दिल फिर भी चुप रहा, महीनों तक मायूस रहा
वक़्त का वो वक़्त था, वक़्त था सो गुज़र गया
कोशिश करती आई ज़िंदगी, हर बार सुलह करवाने की
हर बार मगर बीच में ही इसकी याददाश्त चली जाती है
दिन महीने साल, सब गुज़र रहे भी हैं और नहीं भी
दिल और दिमाग़ के दरमियाँ, एक यही तग़ाफ़ुल है
सोच रहा हूँ इस बार कुछ अनकहा लिखूं
वही अनकहा जो खुद में महसूस करता हूँ।
“ज़िंदगी: रूह दा रेडियो”
ये तमाम कायनात एक रेडियो ब्रॉडकास्टर की तरह है
जो हर वक़्त कायनात में मोहब्बत फैलाने की हसरत में
इश्क़ की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स रेडिएट करती रहती है
और ये ज़िंदगी उस महत्वाकांक्षी श्रोता लिस्टनर की तरह है
जो कि ज़िंदगीभर सही स्टेशन ट्यून करने की चाहत में
अपनी कोशिशों के ट्यूनर को चारों ओर घुमाता रहता है
लेकिन मनपसंद स्टेशन के आस-पास
नाॅस्टेल्जिक नॉइज बहुत होता है
जिसे पूरी तरह से रिमूव करने में फ़ितरत का फिल्टर नाकाम रहता है
कायनात के इस चैनल की सबसे ख़ास बात यह है
कि यहाँ केवल प्यार की ढ़ाई हर्टज फ्रिक्वेंसी ही नहीं
बल्कि श्रोताओं के नसीब की ब्रॉडकास्टिंग भी होती हैं
और तो और
प्रोग्राम के दौरान अक्सर एड भी वहीं आते हैं
जो सुनने वालों के मन के मन को बहलाते हैं
गीत सुनाते-सुनाते, अपनी दुनिया में ले जाते हैं
ये सब तो ठीक है,
मगर अब तक ये पता नहीं चल पाया
के रूह के रिकॉर्डिंग रूम में
आखिर वो आरजे कौन है?
जो हर वक़्त, वक़्त के अकाॅर्डिंग
नये-पुराने ट्रैक प्ले करता रहता हैं
और बीच-बीच में दिल की बातें
पुरानी वो यादें ताज़ा कर देता हैं
तो चलिये दोस्तों
मैं जब तक उस आरजे का पता लगाता हूँ
आप तब तक इक एहसास की आवाज़ में
यह नग़्मा सुनिये
बोल है राॅकशायर इरफ़ान के
संगीत है मन के मीत का
और फिल्म का नाम है
ज़िंदगी: रूह दा रेडियो
“संग तुम्हारे काॅफ़ी पीने की आरज़ू लिये बैठे है हम”
संग तुम्हारे काॅफ़ी पीने की आरज़ू लिये बैठे है हम
और तुम हो कि हरबार बहाना बनाके टाल देती हो
कब तक टालती रहोगी, यूँ खुद को और मुझको
कभी तो आईने में देखो, खुद में पाओगी मुझको
जो खुद में मुझको ना पाओ, तो फिर कहना
तुम्हें सब पता है इस दिल का आलम, है ना ?
रिश्तों को नाम देकर, उन्हें बदनाम क्यों करना
कुछ रिश्ते नाम के मोहताज़ नहीं होते
एहसास को सिर्फ महसूस किया जा सकता है
इसको जताने का माद्दा किसी अल्फ़ाज़ में नहीं
गर सुबह का ख़्वाब सच होता है तो वो ख़्वाब तुम हो
गर दिल की आवाज़ सुन रही हो तो वो आवाज़ तुम हो
संग तुम्हारे जीने की अब आरज़ू लिये बैठे है हम
और तुम हो कि हरबार वादा करके भूल जाती हो
कब तक भूलती रहोगी, यूँ खुद को और मुझको
कभी तो दिल से देखो, पाओगी हरजगह मुझको