मेरी रातों की नींद उड़ाने वाली
कल मैंने तुमसे थोड़ी नींद मांगी थी।
नींद तो नहीं दी तुमने
पर अपना तकिया दे दिया मुझे।
दिनभर मैं जिसका सिरहाना लगाता हूँ
और रात को उसी सिरहाने के नीचे तुम्हारी तस्वीर रखता हूँ।
वही तस्वीर जिस पर ग़ज़ल लिखने की ख़्वाहिश रखता हूँ
वही तस्वीर जिसकी आँखें पढ़ने की कोशिश करता हूँ।
वही गुज़ारिश जिसे सुनकर भी तुम नहीं सुनती हो
हाँ वही बारिश जिसमें भीगकर भी ख़ुश्क़ रहती हो।
इस तकिये से तुम्हारी खुशबू आती है
तुम्हारी खुशबू, जो मुझे दीवाना बनाती है।
दीवाना भी ऐसा, जो कभी किसी ने ना देखा
गर देखा भी हो तो कभी किसी ने ना जाना।
मेरी रातों की नींद उड़ाने वाली
कल मैंने तुमसे थोड़ी नींद मांगी थी।
नींद तो नहीं दी तुमने
पर अपना तकिया दे दिया मुझे।
आज जब मैं उस तकिये से लिपटकर सोया
तो पता चला, के नींद क्या होती है, चैन क्या होता है।
शुक्रिया मुझे मेरी नींद से मिलवाने के लिये
शुक्रिया रोज़ाना मेरे ख़्वाबों में आने के लिये।।
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