सब एहसास ख़त्म हो गये
सब जज़्बात ख़त्म हो गये।
ये किस दौर में आ गये हम
सब अल्फ़ाज़ ख़त्म हो गये।
ज़िन्दगी मजाक बनकर रह गयी
मजाक भी वो जिसपे न आये हंसी।
ख़ुशी के नाम से ही चिढ होती है
चिढ भी वो जो कम न होती कभी।
हद से ज्यादा बहुत गुस्सा आता है
गुस्सा भी वो जो खुद को जलाता है।
वफ़ा के नाम से ही ख़फ़ा हो जाते है
ख़फ़ा भी ऐसे के जैसे ज़फ़ा हो जाते है।
सब उम्मीदें ख़त्म हो गयी
सब हसरतें भस्म हो गयी।
अब उस दौर में आ गये हम
जहाँ मोहब्बतें रस्म हो गयी।।