मुझको रोकने की कभी हिम्मत न करना
गलती से भी टोकने की हिम्मत न करना।
दहकती आग हूँ मैं, मासूम मोम हो तुम
पास आने की कभी ज़ुर्रत न करना।
माफ़ कर देना, दिल को साफ़ कर लेना
रब से किसी की शिकायत न करना।
औरों के लिये, कोई और बनकर
खुद से कभी तुम बग़ावत न करना।
महसूस न कर पाओ जिसे खुद में तुम
उस शख़्स से कभी मोहब्बत न करना।
मौत भी तो एक मुकम्मल ज़िंदगी है
फिर ऐसी ज़िंदगी की चाहत क्या करना।
मरकर हमने तो इतना ही जाना इरफ़ान
के खुद से कभी तुम नफ़रत न करना।।