गुच्छे की आखिरी चाबी भी कभी-कभी ताला खोल देती हैं
ये सच है कि निगाहें दिल की अनकही हर बात बोल देती हैं।
नज़रों की बेनज़ीर शमशीर, जब किसी पर चलती है तो
कुछ बोलने से पहले नज़रों में छुपा हर डर खोल देती हैं।
गुनगुनाते हुये गीत की तरह, मुस्कुराते हुये संगीत की तरह
इतनी गहरी है तुम्हारी आँखें कि मेरा मन टटोल लेती हैं।
वैसे तो बेज़ुबां आँखें बोलती नहीं, राज़ कभी कोई खोलती नहीं
पर हो यक़ीं जिस पर, अपना हर राज़ उसे बोल देती हैं।
पढ़ने वाली और लिखने वाली, एक ही नज़र के कई हुनर
बिना तराजू और बाट के फट से वज़्नी हर्फ़ तोल देती हैं।
पहली नज़र का वो असर, नज़रों से कभी नज़र मिलाकर तो पूछो
बिना सोचे-समझे बिना पूछे-ताछे बस हाँ बोल देती हैं।
सारी ज़िंदगी गुज़र गयी, बस यही बात नज़र आयी
कि रोते वक़्त अमूमन आँखें अपना दिल खोल देती हैं।।
@RockShayar