ज़िंदगी की घनेरी कोई जुल्फ़ हो तुम
ज़िंदगी का बेनज़ीर वो लुत्फ़ हो तुम।
जिसे लिखने के बाद, मिले खूब दाद
ग़ज़ल का ऐसा कोई लफ़्ज़ हो तुम।
नज़र से लेकर जिगर तक क्या कहूँ
टूट नहीं सकता वो तिलिस्म हो तुम।
सुनकर जिसे महसूस करने लगे हम
जानाँ गुलज़ार की वो नज़्म हो तुम।
तोड़ने से टूटे ना, छोड़ने से छूटे ना
निभाना लाज़िम जिसे वो रस्म हो तुम।
मैं शायर गुमनाम अंधेरी गलियों का
अदीबों की बाअदब बज़्म हो तुम।
दीदार किया तो पता ये चला इरफ़ान
मोहब्बत का मासूम अक्स हो तुम।।