ख़ामोशी के क़तरे
आज़ाद होकर
यहाँ-वहाँ
बस अपना
अधूरापन लिए
हवाओ में बह रहे हैं।
कभी खुद से बहुत दूर चले जाते हैं
तो कभी खुद के बहुत पास आ जाते हैं।
लेकिन जब भी तुम और मैं
हम दोनों साथ होते हैं
तो ये हमारी ओर खिंचे चले आते हैं
एक अनजान कशिश इन्हें अपने पास बुलाती हैं।
जितनी जल्दी
ये हमारी निगाहों में दाखिल होते हैं
उतनी ही जल्दी
ये एक खूबसूरत गुफ़्तगू में शामिल होते हैं।
ख़लाओं के क़तरे
आज़ाद होकर
यहाँ-वहाँ
बस अपना
बंजारापन लिए
फ़िज़ाओ में बह रहे हैं।
कभी खुद से बहुत नाराज़ हो जाते हैं
तो कभी खुद के बहुत पास सो जाते हैं।।