हमने ख़ुद को ज़ुबान दी है
अपने लिए ख़ुद जान दी है।
ज्योंही पैर डगमगाने लगे
बन्दूक सिर पर तान दी है।
दो गज ज़मीन के अलावा
अपनी पूरी ज़मीन दान दी है।
गिरवी ख़्वाब छुड़ाने की ख़ातिर
खेत मकान और दुकान दी है।
ज्यादा कुछ नहीं बस अपनी
आन बान और शान दी है।
जिसने भी दिल की सुनी है
दिल ने उसे ज़ुबान दी है।
शहीदों को सलाम करो इरफ़ान
देश के लिए इन्होने जान दी है।।