ऊपर बैठा है मदारी, और जमूरा है नीचे
तू आगे-आगे, तेरी परछाई पीछे -पीछे।
कुछ भी कर ले चाहे तू, मगर होनी तो एक दिन होकर रहेगी
सुन बस अपने दिल की तू, हालाँकि दुनिया तुझे जोकर कहेगी।
सबसे निकम्मा चेला तू, और सबसे बड़ी गुरु ज़िन्दगी
जिस पल भी तू गिरता है, वहीँ से असल शुरू ज़िन्दगी।
काल का यह डमरू, सब को अपनी ताल पर नचाये
हर प्राणी के लिए यहाँ, नाना प्रकार के खेल रचाये।
जैसी करनी वैसी भरनी, बहुत सुना और बहुत देखा
न्याय तो केवल वो करे, उसके पास है सब का लेखा।
न किसी का मज़ाक उड़ाओ, न किसी का दिल दुखाओ
न किसी का तलाक़ कराओ, न किसी का घर जलाओ।
सब कुछ उसके सामने है, सब कुछ उसकी मर्ज़ी से है
सबसे अक़्लमंद है फिर भी, कर्म इंसान के फर्जी से है।
ऊपर बैठा है उस्ताद, और शागिर्द है नीचे
तू आगे-आगे, तेरी तक़दीर पीछे -पीछे।।