
बरसों पुरानी, है ये कहानी
क़द्र किसी ने, न उसकी जानी।
मज़ाक उड़ाया, जब पूरे जग ने
आख़िर उसने, लड़ने की ठानी।।
ख़ामोशी को, हथियार बनाया
दर्द को अपनी तलवार बनाया।
ख़त्म हो गए, जब सारे पैतरे
ज़ेहन को ही, औज़ार बनाया।।
ज़माने ने उस को, पागल कहा
दहाड़ता हुआ शेर, घायल कहा।
आसमां ने सीरत, नम देखकर
ज़मीं का आशिक़, बादल कहा।।
बरसों पुरानी, है ये कहानी
बात किसी ने, न उसकी मानी।
मज़ाक बनाया, जब पूरे नभ ने
आख़िर उसने, उड़ने की ठानी।।