जान लेना और देना, हमें दोनों आता है
यह तुझ पर है, कि तू क्या चाहता है।
दर्द को जब से, बनाया है हथियार हमने
दर्द अब पहले जितना नहीं सताता है।
जो पूछा किसी ने, तो अपनों ने तआरूफ़ कुछ यूँ दिया
के पता नहीं काग़ज़ पर, चंद लकीरें बनाता है।
वक़्त बहुत लगा, कंकर से चट्टान बनने में
वक़्त है आखिर, सब को आज़माता है।
पहले बहुत रोता था, जो चैन अपना खोता था
सुना है वो आजकल जोशीले गीत सुनाता है।
ज़माना कहता है अक्सर, पागल शायर उसे
ज़ेहन में हर वक़्त जो ख़याली मुर्गे लड़ाता है।
कुछ इस तरह, तरसाती आयी है ज़िंदगी हमें
कि जैसे सूखी ज़मीं को काला बादल तरसाता है।।
Behatarin