बासी पड़े ख़यालों से दिमाग़ी कॉन्स्टिपेशन हो गया
पता ही नहीं चला कब मुझ में मेरा सेपरेशन हो गया।
खुद से खुद की मुलाकात है, फिर डरने की क्या बात है
जब जुनून का सुकून से डायरेक्ट कनेक्शन हो गया।
मुश्किलों को पार करके, जब फल मिला तो लगा उसे
कि जैसे किसी जॉब का कम्पलीट प्रोबेशन हो गया।
इतने साल हो गए, वो लिखता रहा बस लिखता रहा
यादों का काग़ज़ पर लाइफटाइम रेस्टोरेशन हो गया।
बार-बार गलतियां करके, और बार-बार ठोकर खाके
खुद में करके सुधार हासिल उसे परफेक्शन हो गया।
धुन का वह धनी, कन्सिस्टन्सी से आगे बढ़ता रहा
विधि के हाथों लिखी गई यूनिक डेफिनेशन हो गया।
वक़्त ने एक रोज जब, संभलने का भी वक़्त न दिया
खुद को पाना ही फिर तो उसका ऑब्सेशन हो गया।।
RockShayar