मासूम से उस बचपन से लेकर, नादान इस जवानी तक
अब्बू की साईकिल से लेकर, अम्मी की हर कहानी तक।
हर बार मुझ को ही तो बस, तुम्हारे हिस्से का वो प्यार मिला है
जितना भी हक़ है तुम्हारा, नहीं कभी उतना भी दुलार मिला है।
तुम्हें भी तो, माँ की महफूज़ गोद बहुत अच्छी लगती होगी
तुम्हें भी तो, पापा की हर आदत बहुत सच्ची लगती होगी।
पर अफ़सोस, कि वो प्यार न मिल पाया तुम्हें
क्योंकि कब्ज़ा कर लिया था मैंने, सारा उस पे।
अंदर के उस अधूरेपन ने तुम्हें, खुलकर जीने से रोक दिया है
इसलिए तो खुद को तुमने, ज़िन्दगी की दौड़ में झोंक दिया है।
सबको बहुत चाहते हो, फिर भी इक़रार नहीं कर पाते हो
दिल के बहुत सच्चे हो, हालांकि कभी कभी रूठ जाते हो।
अगर बीते उस दौर में, मैं फिर से जा सकता तो बदल देता वो सब
कोशिश कर रहा हूँ, इससे ज्यादा और कर भी क्या सकता हूँ अब।
दुआ है मेरी ये दिल से कि, तुम्हें तुम्हारा पूरा पूरा हक़ मिले
लिखा है जो भी मुकद्दर में बेशक, बेहतरीन वो रिज़्क़ मिले।।